Uninhibited
Thursday, 16 August 2018
भोला...
बारिश की वो मीठी बूंदे...जब होंठों से..जा लिपटी थी..
आज़ाद हुएे कुछ ख्वाहिश मेरे...जो अबतक तन से चिपटी थी..
मूंद के आंखें जब मैंने..उसके गालों को टटोला था..
स्पर्श की गर्मी आह सी भर गई..क्या इतने दिनों तक मैं भोला था?
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