Thursday 16 August 2018

तारीफ़...

एक शाम जब बैठे अंधेरे में..
स्याह रातों के अपने सवेरे में..
एक नर्म हवा सेहला सी गई..
क्यूं लगा तुम बेहला सी गई..

तुम्हारे गर्म होंठों की छुअन से..
वो नशीली खुशबू तुम्हरे बदन से..
रूह मेरी मानो थर्रा सी गई..
प्यार अपना जैसे बरसा सी गई..

No comments:

Post a Comment